Saturday, July 31, 2010

भाई बारिस तो बारिस किसी की गुलाम नहीं

बारिस तो बारिस है .यह बारिस किसी राजनितिक पार्टी की कियो नहीं होती आज बीजेपी की बारिस कल congress की बारिस .parso bsp की बारिस lagata है यह बारिस bhee लावारिस है इसका कोइए पोलिटिकल पार्टी इसका साथ नहीं है किसी पार्टी का बहुमत नहीं है तभी तो जब मन करता है बरसती है जब मन नहीं करता नहीं बरसती है कांग्रेस पार्टी इस समय बारिस नहीं चाहती है .लकिन बीजेपी घनघोर बारिस चाहती है .बारिस भी इस समय एक दलित की तरह अछूत है जैसा उच्च वर्ग का लोग अछूत को दूर रखता है कांग्रेस भी इस समय बरिस के साथ यही चाहती है यह बरिस किसी के साथ भेदभाव कियो नहीं करती .भाई बारिस तो बारिस है यह किसी की प्राइवेट संपत्ति नहीं है

भाई बारिस तो बारिस kisi ki gulam nahi

बारिस तो बारिस है .यह बारिस किसी राजनितिक पार्टी की कियो नहीं होती आज बीजेपी की बारिस कल congress की बारिस .parso bsp की बारिस lagata है यह बारिस bhee लावारिस है इसका कोइए पोलिटिकल पार्टी इसका साथ नहीं है किसी पार्टी का बहुमत नहीं है तभी तो जब मन करता है बरसती है जब मन नहीं करता नहीं बरसती है कांग्रेस पार्टी इस समय बारिस नहीं चाहती है .लकिन बीजेपी घनघोर बारिस चाहती है .बारिस भी इस समय एक दलित की तरह अछूत है जैसा उच्च वर्ग का लोग अछूत को दूर रखता है कांग्रेस भी इस समय बरिस के साथ यही चाहती है यह बरिस किसी के साथ भेदभाव कियो नहीं करती .भाई बारिस तो बारिस है यह किसी की प्राइवेट संपत्ति नहीं है

अमीर दलितों को अपनी सम्पति को अपना दलितों kai बीच मैं बात कर एक मिसाल कायम करनी chaihya

एक dalit bhai बहुत जोर जोर साईं आज कल ब्लॉग पर मंदी की सम्पति और उच्च कुल का लोगो की सम्पति का बटवारा दलितों के बीच करना को कहता है .प्रथम dalit पक्ति के लोग अपनी संपत्ति का बटवारा अपना dalit परिवार मैं बात कर एक मिसाल कायम कर dalit के बीच विस्वाश कायम करना का जज्बा दिखैया
एक dalit की टिप्पड़ी एक ब्लॉग पर इस प्रकार है
हमारेदेश में 10 लाख मंदिर हैं। उनमें अरबों खरबों का सोना चांदी, हीरे मोती और भूमि आदि खराब पड़ी सड़ रही है। संत माया को छोड़ना सिखाते हैं , नर में नारायण देखना बताते हैं, इसलिये सबसे पहले मंदिरों का सोना सम्पत्ति गरीबों में बांट देनी चाहिये। बाबरी मस्जिद अब दोबारा वहां बनेगी नहीं और ज्यादा रौला मचाओगे तो दूसरी बनी हुई भी तोड़ दी जायेंगी। मुसलमान जिनसे उलझ रहे हैं वे पूरी हड़प्पा सभ्यता को नष्ट करके द्रविड़ों को ऐसा दास बनाकर सदियों रख चुके हैं कि वे अपनी ब्राहुई भाषा तक भूल चुके हैं। हम अतीत के दलित हैं और मुसलमान वर्तमान के । दोनों एकसाथ हैं इसीलिये आज एक दलित सी. एम. है। न्याय के लिये समान बिन्दुओं पर सहमति समय की मांग है। अगर आपके लीडर दगाबाज हैं तो हमारे लीडर को आजमाने में क्या हर्ज है ?
समय कठिन है एक गलत ‘न‘ पूरा भविष्य चैपट कर सकती है। एक दुखी ही दूसरे दुखी का दर्द समझ सकता है। हमें मंदिर मस्जिद से जो न मिला वह हमें बाबा साहब के संघर्ष से मिला इसलिये सारे मुद्दे फिजूल लगते हैं केवल बाबा साहब का आह्वान में दम लगता है। यह एक dalit की टिप्पड़ी एक ब्लॉग पर है

Friday, July 30, 2010

दलित ही दलित का दुश्मन है

दलित ही दलित का दुश्मन है .यह बात बिलकुल ही सच है .दलित का हित की बात करना वाला ही असली दलित विरोधी है बस एक बार किसी भी तरह कुछ नाम और दाम कमा ले उसकी बाद कौन दलित और कौन दलित का साथ वोह फिर दलित के पास bathana भी पसंद नहीं करता है १.रामविलास.२.मीरा।३. माया और भी बहुत है इस देश के अंदर मैं.बस इतना ही काफी है .

दलिस्तान की मांग हो जय दलित

भारत देश के अंदर दलितों की आबादी बहुत है लकिन आज तक किसी भी दलित नै दलिस्तान की मांग नहीं की ???????????????????????????????????????????????????????जय भीम की जगह अब जय दलित का नारा होना चाहिय दलिस्तान जिंदाबाद होना चाहिय दलित के daish मैं परधन मंत्री भी दलित huga aur mukhimantri भी दलित हूगा aur to aur jiladheesh भी दलित huga jilajuj भी दलित hoga .jis tarah आज aam aadmi के liya roti kapada aur makaan होना चाहिय usi tarah दलितों के liya alag sai ek दलिस्तान होना चाहिय जय दलित जय दलिस्तान

Wednesday, July 28, 2010

बेड़ा गर्क हो राष्ट्रकुल खेलों का: अय्यरठ्ठ जागरण ब्यूरो,

बेड़ा गर्क हो राष्ट्रकुल खेलों का: अय्यरठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली पहले ही अधूरी तैयारियों को लेकर आलोचनाओं में घिरे दिल्ली राष्ट्रकुल खेल अब शापित भी होने लगे हैं। खेल आयोजन को सफल दिखाने को जहां केंद्र और राज्य सरकार की सांसे फूल रही हैं, वहीं पूर्व खेल मंत्री व कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर ने इसे शाप दे डाला है। थोड़ी सी बारिश में ही तैयारियों की कलई खुलने पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा, बेड़ा गर्क हो इस खेल का। आयोजन सफल हुआ तो उन्हें दुख होगा। वहीं सुरेश कलमाड़ी ने भी पलटवार करते हुए अय्यर के बयान को गैर जिम्मेदाराना और राष्ट्रविरोधी करार दिया। हालांकि अय्यर की इस टिप्पणी से कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया। पार्टी प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, मैं नहीं जानता उन्होंने (अय्यर ने) किस संदर्भ में कहा है। चूंकि राष्ट्रकुल खेलों का आयोजन भारत में हो रहा है इसलिए हम आशा करते हैं कि ये सफल हों। एक अन्य पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि इन खेलों का आयोजन देश के लिए गौरव की बात है। राष्ट्रकुल सरीखे अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के खिलाफ रहे अय्यर ने मंगलवार को जहां सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी, वहीं खेल आयोजन से जुड़े नेताओं के जले पर नमक छिड़क दिया। आयोजन की तैयारी हर मोर्चे पर समय से पीछे है। मंगलवार की हल्की सी बारिश ने रही-सही पोल खोल दी। करोड़ों खर्चकर बनाए गए नेहरू स्टेडियम में भी पानी भर गया। संसद भवन परिसर में पत्रकारों से बातचीत में अय्यर ने कहा, मैं दिल्ली में हो रही बारिश से बहुत खुश हूं, क्योंकि इससे राष्ट्रकुल खेलों की तैयारियों के लिए चुनौती बढ़ गई है। मुझे दुख होगा अगर आयोजन सफल हो गया, क्योंकि उसके बाद वे ओलंपिक और एशियाड के लिए भी दावा करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि जो बुरा सोचेगा वही इसकी पैरवी करेगा। जिन पैसों को देश के गरीब बच्चों पर खर्च किया जाना चाहिए था वह इस खेल पर खर्च किया जा रहा है। आयोजन की दहलीज पर खड़ी दिल्ली के लिए उनका यह बयान सभी को चुभ रहा है। कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि वह अय्यर को गंभीरता से नहीं लेते हैं। भाजपा और सपा को भी अय्यर का बयान नहीं पच रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद और सपा प्रवक्ता मोहन सिंह ने केंद्र और राज्य सरकार पर तो उंगली उठाई लेकिन अय्यर को भी सलाह दी कि इस मौके पर जिम्मेदारी से बोला जाना चाहिए।बेड़ा गर्क हो राष्ट्रकुल खेलों का: अय्यरठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली पहले ही अधूरी तैयारियों को लेकर आलोचनाओं में घिरे दिल्ली राष्ट्रकुल खेल अब शापित भी होने लगे हैं। खेल आयोजन को सफल दिखाने को जहां केंद्र और राज्य सरकार की सांसे फूल रही हैं, वहीं पूर्व खेल मंत्री व कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर ने इसे शाप दे डाला है। थोड़ी सी बारिश में ही तैयारियों की कलई खुलने पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा, बेड़ा गर्क हो इस खेल का। आयोजन सफल हुआ तो उन्हें दुख होगा। वहीं सुरेश कलमाड़ी ने भी पलटवार करते हुए अय्यर के बयान को गैर जिम्मेदाराना और राष्ट्रविरोधी करार दिया। हालांकि अय्यर की इस टिप्पणी से कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया। पार्टी प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, मैं नहीं जानता उन्होंने (अय्यर ने) किस संदर्भ में कहा है। चूंकि राष्ट्रकुल खेलों का आयोजन भारत में हो रहा है इसलिए हम आशा करते हैं कि ये सफल हों। एक अन्य पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि इन खेलों का आयोजन देश के लिए गौरव की बात है। राष्ट्रकुल सरीखे अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के खिलाफ रहे अय्यर ने मंगलवार को जहां सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी, वहीं खेल आयोजन से जुड़े नेताओं के जले पर नमक छिड़क दिया। आयोजन की तैयारी हर मोर्चे पर समय से पीछे है। मंगलवार की हल्की सी बारिश ने रही-सही पोल खोल दी। करोड़ों खर्चकर बनाए गए नेहरू स्टेडियम में भी पानी भर गया। संसद भवन परिसर में पत्रकारों से बातचीत में अय्यर ने कहा, मैं दिल्ली में हो रही बारिश से बहुत खुश हूं, क्योंकि इससे राष्ट्रकुल खेलों की तैयारियों के लिए चुनौती बढ़ गई है। मुझे दुख होगा अगर आयोजन सफल हो गया, क्योंकि उसके बाद वे ओलंपिक और एशियाड के लिए भी दावा करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि जो बुरा सोचेगा वही इसकी पैरवी करेगा। जिन पैसों को देश के गरीब बच्चों पर खर्च किया जाना चाहिए था वह इस खेल पर खर्च किया जा रहा है। आयोजन की दहलीज पर खड़ी दिल्ली के लिए उनका यह बयान सभी को चुभ रहा है। कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि वह अय्यर को गंभीरता से नहीं लेते हैं। भाजपा और सपा को भी अय्यर का बयान नहीं पच रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद और सपा प्रवक्ता मोहन सिंह ने केंद्र और राज्य सरकार पर तो उंगली उठाई लेकिन अय्यर को भी सलाह दी कि इस मौके पर जिम्मेदारी से बोला जाना चाहिए।बेड़ा गर्क हो राष्ट्रकुल खेलों का: अय्यरठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली पहले ही अधूरी तैयारियों को लेकर आलोचनाओं में घिरे दिल्ली राष्ट्रकुल खेल अब शापित भी होने लगे हैं। खेल आयोजन को सफल दिखाने को जहां केंद्र और राज्य सरकार की सांसे फूल रही हैं, वहीं पूर्व खेल मंत्री व कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर ने इसे शाप दे डाला है। थोड़ी सी बारिश में ही तैयारियों की कलई खुलने पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा, बेड़ा गर्क हो इस खेल का। आयोजन सफल हुआ तो उन्हें दुख होगा। वहीं सुरेश कलमाड़ी ने भी पलटवार करते हुए अय्यर के बयान को गैर जिम्मेदाराना और राष्ट्रविरोधी करार दिया। हालांकि अय्यर की इस टिप्पणी से कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया। पार्टी प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, मैं नहीं जानता उन्होंने (अय्यर ने) किस संदर्भ में कहा है। चूंकि राष्ट्रकुल खेलों का आयोजन भारत में हो रहा है इसलिए हम आशा करते हैं कि ये सफल हों। एक अन्य पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि इन खेलों का आयोजन देश के लिए गौरव की बात है। राष्ट्रकुल सरीखे अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के खिलाफ रहे अय्यर ने मंगलवार को जहां सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी, वहीं खेल आयोजन से जुड़े नेताओं के जले पर नमक छिड़क दिया। आयोजन की तैयारी हर मोर्चे पर समय से पीछे है। मंगलवार की हल्की सी बारिश ने रही-सही पोल खोल दी। करोड़ों खर्चकर बनाए गए नेहरू स्टेडियम में भी पानी भर गया। संसद भवन परिसर में पत्रकारों से बातचीत में अय्यर ने कहा, मैं दिल्ली में हो रही बारिश से बहुत खुश हूं, क्योंकि इससे राष्ट्रकुल खेलों की तैयारियों के लिए चुनौती बढ़ गई है। मुझे दुख होगा अगर आयोजन सफल हो गया, क्योंकि उसके बाद वे ओलंपिक और एशियाड के लिए भी दावा करेंगे। उन्होंने आगे कहा कि जो बुरा सोचेगा वही इसकी पैरवी करेगा। जिन पैसों को देश के गरीब बच्चों पर खर्च किया जाना चाहिए था वह इस खेल पर खर्च किया जा रहा है। आयोजन की दहलीज पर खड़ी दिल्ली के लिए उनका यह बयान सभी को चुभ रहा है। कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि वह अय्यर को गंभीरता से नहीं लेते हैं। भाजपा और सपा को भी अय्यर का बयान नहीं पच रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद और सपा प्रवक्ता मोहन सिंह ने केंद्र और राज्य सरकार पर तो उंगली उठाई लेकिन अय्यर को भी सलाह दी कि इस मौके पर जिम्मेदारी से बोला जाना चाहिए।

कोरी बयान बाजी हिस्सा दो और काम करो

मणि शंकर अयार का बयान क्या कहना चाहता है येही की हिस्सा दो और काम करो वरना हम ऊपर वालो साईं यही दुआ करूँगा की खूब बरिस हो जिस साईं किसान के फसल आछि हूँ और दिल्ली सरकार का ऊपर विपक्ष वाला आकमण कर दे और सत्ता अपना हात मैं लेलेkउर्सी का खेल है कभी बाप तो कभी बेटा शेर है

Tuesday, July 27, 2010

दिल्ली के दिल का दर्द

दिल्ली का दिल कह जाने वाला दिल्ली १ का इलाका आज कल आम आदमी के लिया एक गुनाह की saza हो ,आज हम गलती साईं बार खम्बा गया थे आना और जाना पटेल नगर से do ghanta tees minuts lag गया yeh दिल्ली walo के लिया saza नहीं too क्या है यह दिल्ली का दिल कह जाता है /वाह री दिल्ली

Saturday, July 24, 2010

आज की बात यही सच है

आज की बात शुक्रवार की शाम का बाद शानिवार की सुबह मौसम और मूड कुछ हद त़क काफी आच्हा था कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था की क्या लिखा जाये फिर सोचा की कुछ तो लिखा ही है आदमी को सपनों को बुनना चाहिय सपनों को हकीक़त मैं बदलना की कोसिस करनी चाहिय आज का सपना ही कल की हकीक़त है यही सच है

Friday, July 23, 2010

आज का हाजमा

आल कल आदमी का हाजमा बिलकुल ही न के बराबर है .आप के येह पर कोइए आता है अगर आप आज कल के मौसम मैं कुछ खाना को कहता है तो वाह न न न करता ही रहता है कुछ समझ मैं नहीं आता है की आज कल आम आदमी को क्या हूँ गया है . आज कल आदमी वहमी हूँ गया है की यह नहीं खाना वोह नहीं खाना तो फिर क्या खाना है लगता है के अगला इलेक्शन मैं सरकार को खाना है तब त़क कुछ नाही खाना है .

Tuesday, July 20, 2010

नमस्कार का चमत्कार

नमस्कार का चमत्कार

क्या आज का दलित kaam के दाम के अलवा इनाम का भी हक़दार hai

दलित काम का दाम के अलावा इनाम क्यों मागता है /क्या वाह इनाम का हक़दार है /काम करो दाम लो बात ख़तम राहत है फिर उसका बाद कहतात है बाबूजी इनाम जितना मजा दलित नै लिया है उतना माजा किसी नै नहीं लिया hai
jitan maja dalit nai liya hai utna maja kisi na nahi liya hai har baat ka inaam dalit aaj bhee laiya raha hai bhola pan sa babu ji inaam ----diwali ka inaam --- holi ka inaam --- ladaka hona ki inaam--- uska nam karan kainaam--- uska pass hona ka inaam--- uska shaadi ka inaam--- har kaam ka daam ka alawa inaam bhee liya hai ---wah r

आज का उवाच शीला जी मैं कोइए ज्योत्षी नहीं हूँ

आज का मौसम बहुत ही मस्त मस्त है .काम मैं मन लग रहा है सूचा कुछ मौसम का ही हाल लिख दू लकिन य मीडिया वाला मानव कुछ न कुछ सरकार का राग अलापता रहता है आखिर मैं शीला जी को कहना ही पढ़ा मैं कोइए ज्योत्षी नहीं हूँ जब एक देश का चीफ मिनिस्टर ऐसा बयान है to बाकी प्रदेश की जनता का इस पानी मैं किया हाल हूगा जनता पानी मैं डूब कर मर जैया मैं तू साशन ऐसा ही करूंगी बिना प्रोटोकाल का एक दिन शीलाजी डेल्ही शहर की आम जनता बन कर घुमा तू पता लगा की जनता मैं कितना सरकार के liya प्यार है-------------------------------------------------------------------------------

Sunday, July 18, 2010

आज का आदमी और उसका pariwartan

आज एक पोस्ट एक blog पर पढ़ी आप का आज का pariwartan है बरेली से वापस लखनऊ लौट रहा था, सड़क से। रोजा (शाहजहाँपुर) की रेलवे क्रासिंग बंद थी। जैसे ही हमारी गाड़ी बन्द फाटक पर रुकी, दो लड़के दोनों तरफ की खिड़कियों से पॉलीथिन में भरे सिंघाड़े दिखा-दिखाकर खरीद लेने की मनुहार करने लगे। ताजा तोड़े गए सिंघाड़े देखकर मुंह में पानी भर आया। तुरन्त एक लड़के से पॉलीथिन पकड़ लिया। इससे पहले कि दाम चुकाता, एक झटके से सिंघाड़े वाला पॉलीथिन उसे वापस पकड़ा दिया-‘नहीं चाहिए, बिल्कुल नहीं।’

लड़का भौंचक कि क्या हो गया-‘साहब ले लो, बिल्कुल ताजा हैं, खाकर देखो साहब।’
-‘नहीं लेना बच्चा, जाओ’। हमने तुरन्त खिड़की का शीशा चढ़ा लिया।

सिंघाड़े का स्वाद अब भी जीभ पर आ रहा था। बचपन से ही सिंघाड़े मुझे बहुत पसंद हैं। किलो भर सिंघाड़े मिनटों में चट कर जाते थे। छीलते-छीलते नाखून दर्द करने लगते मगर सिंघाड़ों से मन नहीं भरता था। सड़क किनारे उबले सिंघाड़े बिकते जहाँ कहीं देखता, झटपट खरीद लेता। साथ में तीखी हरी मिर्च और हरी धनिया की चटनी रद्दी अखबार के एक टुकड़े पर मिलती थी। इस चटनी के साथ उबले सिंघाड़े गजब का स्वाद देते। जीभ चटखारे लेती। उबले सिंघाड़े सड़क के किनारे अब भी बिकते हैं और साथ में चटपटी हरी चटनी भी, लेकिन मैं मुंह मोड़ लेता हूं। क्या हो गया है अब ? सिंघाड़े वही हैं-वैसे ही स्वाद भरे-कच्चे/उबले, हरी चटनी भी वैसी ही जायकेदार, मगर मैं बदल गया हूं।

उस दिन रेल के बन्द फाटक के पास ताजा सिंघाड़े चाहकर भी इसीलिए नहीं खरीद पाया कि उन्हें धोने के लिए ‘पोटाश’ कहां रखा था! हाँ, अब सिंघाड़े खरीद कर घर लाए जाते हैं, घण्टों पोटाश (पोटेशियम परमैगनेट) में भिगोए जाते हैं और तब चाकू से छीलकर खाए जाते हैं। वह दिन गए जब सड़क किनारे खरीदकर दांतों से छीलकर मजे से खाए जाते थे। तालाब के गंदे पानी की काई सिंघाड़ों में चिपकी रहती थी पर कोई चिन्ता नहीं होती थी, उन दिनों को हमने क्यों जाने दिया? यह नफासत कहाँ से और क्यों चली आई ?

याद करता हूं उन मस्त दिनों को जब ‘गंदगी’ या ‘इन्फेक्शन’ की कोई चिन्ता नहीं होती थी। मिट्टी-कीचड़ खेल और आनन्द का हिस्सा थे। स्कूल आते-जाते प्यास लगी तो म्युनिसपलिटी के नल, बम्बा कहते थे हम उन्हें, बड़ा सहारा होते थे। नल खोला, चुल्लू लगाया और गटागट पानी पी गए। पार्क में खेलते-खेलते प्यास लगी तो घास सींचने के लिए लगा पाइप उठाकर सीधे मुंह में धार गिराते थे। सब ऐसा ही करते थे और कोई किसी को नहीं टोकता था। ‘पानी की बोतल’ से कोई परिचित नहीं था। आज पानी की बोतल के बिना न बच्चे स्कूल जाते हैं, न हम दफ्तर या यात्रा पर।

तब यात्रा के दौरान प्यास लगी तो प्लेटफार्म का नल जिन्दाबाद। ट्रेन रुकी, प्लेटफार्म पर दौड़ लगाई, नल से चुल्लू लगाकर पानी पिया, किसी सहयात्री दादी का गिलास भी भरकर थमाया और दौड़ाकर ट्रेन पर चढ़ लिए।

आज हम जगह-जगह ‘बिसलेरी’ यानि बोतल बंद पानी खरीदते हैं या घर से पाँच लीटर का कंटेनर लेकर यात्रा पर जाते हैं। पानी की बोतल हर वक्त का जरूरी सामान हो गई है और हर बार उसकी सील पर सन्देह करना भी अनिवार्य हो गया है। बच्चे के भारी स्कूल बस्ते के साथ पानी की बोतल का वजन भी बढ़ गया है। बच्चा स्कूल के नल से पानी पी ले तो उसे डाँट पड़ती है और डॉक्टर के पास ले जाया जाता है।

मैंने बड़ी इच्छा के बावजूद उस दिन सिंघाड़े इसलिए नहीं खाए कि बिना पोटाश से धोए इन्फेक्शन हो जाने का डर बड़ा हो गया था। अब हर चीज में शंका होती है-फल में, सब्जी में, पानी में, दवा में भी।

तमाम शंकाओं से घिरे हम कितने सतर्क हो गए हैं! पानी भी हमें डराता है और मासूम-सा सिंघाड़ा भी। अब हम सड़क किनारे खीरा या ककड़ी कटवाकर नमक के साथ खाने का स्वाद सिर्फ याद करते हैं, बरफ के टुकड़े पर रखे ‘ठण्डे-ठण्डे-लालो-लाल’ तरबूज के कटे टुकड़े से दूर भागते हैं और गन्ने के ताजा रस को पीलिया का पर्याय मानते हैं।
यह कैसा हो गया है हमारा जीवन और किसने इसे ऐसा बना दिया है?

Thursday, July 15, 2010

आज देश मैं कोई गरीब नहीं hai

आज कई भारत मैं अगर koie कहता है की भारत मैं गरीब है भारत मैं गरीबी है ऐसा कुछ नहीं है। आज का भारत कल का दुनिया का सबसा ताकतवर देश होगा आज भारत देश कई अंदर एक मजदूर एक दिन की मजदूर १५०/=रुपिया सा लाकर २५०/= रुपिया लेता है और आप लोग कहता है की भारत के अंदर गरीब है गरीबी है ऐसा कुछ नहीं है आज मजदूर नहीं मिलता है आज प्लुम्बेर नहीं मिलता है प्लुम्बेर ४००/=रुपिया मागता है और आप कहता है गरीबी है। रेलवे स्टेशन पर कुली एक सामन उठाना का १००/=रुपिया मागता है और आप कहता गरीबी है रिक्शावा चलाना वाला २किलोमेतेर का ५०/=रुपिया मागता है और हमारा देश का नेता कहता है देश गरीब है,आज कल हेर छोटा मोटा आदमी मोबाइल रखता है घर की कामवाली मोबिल्ले रखती है और आप कहता है गरीबी है--------koie गरीब नहीं सिर्फ लोगो का दिमाग गरीब है कोय्की लोग काम नहीं करना चातहा है ओर अगर आपकी लात्रीन मैं पानी भर गया तो आप सेवर वाला को बुलाता है वो कहता है ५००/=रुपिया लूगा आप कहता हैं देश मैं गरीब है -------------आज की लिया इतना ही काफी है ------

प्रतिभाशाली का विद्रोह दुर्भाग्यपूर्ण होता है।

आज एक लेख दीनिक जागरण मैं पढ़ा उसकी एक line दिल को छु गयी प्रतिभाशाली का विद्रोह दुर्भाग्यपूर्ण होता है। दवा का ही बीमारी बन जाना खतरनाक है। आरक्षण सामाजिक आर्थिक पिछडे़पन की अस्थाई दवा थी, लेकिन अब राष्ट्र-राज्य की स्थाई बीमारी है। यह लोकनियोजन में अवसर की समता के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में अन्याय है। क्षमतावान की निराशा है। 1949 में संविधान सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने ठीक कहा था, मैं तो यहां तक चाहता हूं कि जो आरक्षण रह गए हों वे भी समाप्त हों, किंतु वर्तमान परिस्थिति में अनुसूचित जाति का आरक्षण हटाना सही नहीं होगा। आरक्षण अस्थाई व्यवस्था थी, इसे समाप्त करना राष्ट्रीय कर्तव्य है। बावजूद इसके भारतीय राजनीति में आरक्षण का कैंसर है। मजहबी आरक्षण की अलगाववादी मांग सामने है। जाट आरक्षण की मांग में राष्ट्रमंडल खेलों में बाधा डालने की धमकी है। महिला आरक्षण के भीतर अनुसूचित, पिछड़े व मुस्लिम हिस्से की मांगे हैं। मतांतरित दलित ईसाई/मुसलमान भी आरक्षण मांग रहे हैं। सवर्ण भी आर्थिक आधार पर आरक्षण के दावेदार हैं। सबको आरक्षण चाहिए। आरक्षण वोट दिलाऊ हथियार है सो सारे दल आरक्षणवादी हैं। कुछ खुल्लम-खुल्ला तो कुछ संकोच के साथ। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा से आगे की संभावनाएं खोल दी हैं। देश में हड़कंप है। प्रतिभाशाली हताश हैं। आरक्षणवादी राजनीति की बांछें खिल गई हैं। संविधान में अनुसूचित जाति आरक्षण की अस्थाई (10 वर्ष) व्यवस्था है। यह अवधि हर 10 साल बाद बढ़ाई जाती है, लेकिन अधिकतम आरक्षण की कोई सीमा नहीं है। मंडल मामले (1993) में सुप्रीम कोर्ट ने ही आरक्षण का अधिकतम कोटा 50 प्रतिशत तय किया था। इस सप्ताह इसी सर्वोच्च न्यायालय ने इस सीमा से आगे जाने की संभावना के द्वार खोल दिए हैं। तमिलनाडु 69 प्रतिशत, कर्नाटक 70 प्रतिशत और उड़ीसा 65 प्रतिशत आरक्षण दे चुके हैं। शीर्ष न्यायपीठ ने राज्य सरकारों से सीमा से अधिक आरक्षण देने के समर्थन में विश्वसनीय आंकड़े व तथ्य संबंधित राज्यों के पिछड़ा आयोगों के सामने रखने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट के ताजा फैसले से मजहबी आरक्षण का जिन्न ताल ठोंक कर बाहर है। कांग्रेस भी सच्चर कमेटी की आड़ में मजहबी आरक्षण की तैयारी में है। संप्रग सरकार भी मजहबी आरक्षण सहित अन्य आरक्षणों की जल्दबाजी में है। आरक्षण ही सबका सहारा है, बाकी आर्थिक राजनीतिक उद्यम पाप हैं। दुनिया के किसी भी देश में भारत जैसा आरक्षण नहीं है, लेकिन यहां आरक्षण का समर्थन प्रगतिशीलता है, सामाजिक न्यायवाद और सेकुलरवाद है। आरक्षण का विरोध पुरोहितवाद तथा सामंतवाद-रूढि़वाद भी है। सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी कोटे की सीमा को तोड़ने के अवसर दिए हैं, लेकिन कोई नई सीमा रेखा नहीं खींची। आरक्षण की मांगें अनंत हैं। राजनीतिक दलों की सत्ता भूख भी अनंत है। दुनिया 21वीं सदी में उड़ रही है। भारत महाशक्ति बन जाने को बेताब है। भारत की प्रतिभाएं भी पंख फैलाकर उड़ी हैं, लेकिन मूल समस्याएं यथावत हैं। समस्याएं आर्थिक और सांस्कृतिक हैं। गरीबी उन्मूलन, संस्कृति संव‌र्द्धन व राष्ट्रीय एकता का काम आरक्षण से नहीं होगा। 1953 में पिछड़े वर्गों की खोज के लिए काका कालेलकर आयोग बना। पं. नेहरू आरक्षणवादी नहीं थे। आयोग की कई सिफारिशें असंगत थीं। सो बेमतलब रहीं। गरीबी का कारण जाति या मजहब नहीं होते। व्यक्ति गरीब होते हैं, खास जाति या खास पंथ मजहब वाले सबके सब अमीर या गरीब नहीं होते। काका कालेकर ने भी राष्ट्रपति को लिखा था, समानता वाले समाज की ओर प्रगति में जाति बाधा है। कुछ निश्चित जातियों को पिछड़ा मानने से यह हो सकता है कि हम जाति प्रथा के आधार पर भेदभाव को सदा के लिए बनाए रखें। मंडल आयोग (1980) ने जातीय आरक्षण को विकास का आधार बनाया। वीपी सिंह ने इसकी प्रस्तावना में ठीक लिखा, सभी सरकारी मुलाजिमों की संख्या कुल आबादी का एक या डेढ़ फीसदी है। हमें भ्रम नहीं है कि यह एक फीसदी हिस्सा या उसका कोई भी टुकड़ा 52 फीसदी है। वीपी सिंह की दृष्टि कथित 52 फीसदी पिछड़ी जाति वोट बैंक पर थी। सो मंडल आरक्षण हुआ, बवाल भी हुआ। मंडल सिफारिशों का लक्ष्य राजनीतिक था। अनुसूचित जाति आरक्षण का लक्ष्य वंचितों को ऊपर उठाना था। संविधान सभा के सामने समृद्ध और समतामूलक राष्ट्र के लक्ष्य थे, वर्तमान राजनीतिक तंत्र के सामने सिर्फ अगला चुनाव। डॉ. अंबेडकर राष्ट्रनिर्माता थे। उन्होंने देश की सर्वाधिक श्रमशील दलित आबादी का भी राष्ट्रीय संपदा पर पहला हक नहीं बताया, लेकिन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताया। संविधान निर्माता 10 वर्ष के भीतर ही समतामूलक आरक्षणमुक्त राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टा थे। संविधान प्रवर्तन (26 नवंबर 1949) के 61 वर्ष हो गए। आरक्षण मुक्त राष्ट्र की बात तो दूर, आरक्षण ही वोट राजनीति का स्थाई हथियार है। संविधान निर्माता स्थाई आरक्षण के विरोधी थे। उन्होंने संविधान में आरक्षण उपायों की निगरानी की भी व्यवस्था की थी। अनुच्छेद 338 व 338 (क) में क्रमश: अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोगों को आरक्षण से होने वाली प्रगति या बाधा के मूल्यांकन का काम सौंपा गया। यही निर्देश पिछड़े वर्ग से जुड़े कृत्यों (अनुच्छेद 340) पर भी लागू है। अनुसूचित जाति, जनजाति के एक छोटे समूह को ही लाभ हुआ है। पिछड़ी जाति आरक्षण से एक खास वर्ग को ही सुविधाएं मिली हैं। आरक्षित वर्र्गो की बहुत बड़ी आबादी भूखी व अभावग्रस्त है। आरक्षण सुविधा पाकर मध्यम या उच्चस्तर पाए लोगों की कोई सूची नहीं बनी। आरक्षण पा चुके अनेक लोग जन्मना जाति का लाभ उठाकर बार-बार आरक्षण ले रहे हैं। आखिरकार दलितों-पिछड़ों के बीच बने नए सवर्ण समूह से वास्तविक दलितों-पिछड़ों को हक दिलाने का काम कब शुरू होगा? आरक्षण राजनीति से अनारक्षित वर्ग समूह में हताशा है। प्रतिभाशाली का विद्रोह दुर्भाग्यपूर्ण होता है। जाति आधारित आरक्षित, लेकिन वास्तव में वंचित समूह में भी घोर निराशा है। नक्सली विद्रोह और हिंसा में संलग्न एक बड़ा हिस्सा इसी समुदाय का है। आरक्षित वर्ग की बहुसंख्यक कतारें प्रतीक्षा में हैं। एक बार आरक्षण पा चुके व्यक्ति के पुत्रों-पौत्रों को अनारक्षित वर्ग में डालने से ही बाकी बचे लोगों को अवसर मिलेंगे। ब्राह्माण, क्षत्रिय, वैश्य सहित अनेक जातियां उच्चस्तरीय मानी गई हैं। आरक्षण पाकर इसी स्तर पर आ गए लोगों को आगे आरक्षण देने का क्या तुक है? सकल राष्ट्रीय आय में प्रति व्यक्ति भागीदारी और वितरण में घोर बेईमानी है। मनमोहन अर्थशास्त्र ने चंद अमीरों की दौलत आसमान पर पहुंचाई, लेकिन 80 करोड़ भूखे हैं। केंद्र बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रबंधक की भूमिका में है। महंगाई और भुखमरी की मार चंद अमीर छोड़ सब पर है। आरक्षण अन्यायमूलक है, जाति मजबूत करने वाला है, जाति युद्ध बढ़ाने वाला भी है। आरक्षण का ठोस विकल्प खोजना ही राष्ट्रीय अपरिहार्यता है। (लेखक उप्र विधान परिषद के सदस्य हैं) लेखक ह.न.dixit

Wednesday, July 14, 2010

बस एक बार ही बरस कर रह-------

दिल्ली का दरबार मैं मौसम की फुहार सिर्फ एक ही बार आभी तक आई लोगो को मौसम की दूसरी फुहार का कब तक इन्तीज़र करना पड़गा हम सबको भी मौसम का इंतिज़ार है /आब तो सिर्फ यही कह सकता हिया की एक बार आजा आज्जा आ jaa

Tuesday, July 13, 2010

मेरी दिल्ली मेरी शान सरकार का गुमान चूर चूर

हर बार की तरह इस बार भी दिल्ली सरकार की कलाई मौसम की पहली ही बार्रिस मैं ही खुल गयी मेर्री दिल्ली मेरी शान का नारा देना वाली दिल्ली सरकार का हाल मौसम की पहली बार्रिस न देखा दिया की देश का दिल का य हाल है टो बाकी देश का किया हाल होगा.मेरी देल्ली मेरी शान का गुमान मौसम नै चूर चूर कर दिया -----------------------------------------------------------बाकी हाल आप लूग बहुत ही बेहतेर जनता जानत्ती है.

Monday, July 12, 2010

पानी रे पानी तेरा रंग kaisa

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा न बरसा तो बरस जा और बरस गया तो य किया हुआ .वाह रे पानी दिला दी याद सबको अपनी अपनी नानी पानी का अजब है तमासा --------------------------------------------

लार्ड मैकाले ब्रिटिश संसद, 2 फ़रवरी 1835 को सम्बोधन भारत को कैसा गुलाम भारत को कैसा गुलाम banaiya

२ फेब्रुअरी ,१८३५ लोर्ड मकाउलय का ब्रिटिश पर्लिअमेंट का statement गूगल मैं सर्च कर dimag पर जोर dai

ब्रिटिश सरकार की देश को गुलाम बनाना की साजिश LORD MACAULAY’ तो एक प्यादा भर---

LORD MACAULAY’S ADDRESS TO THE BRITISH PARLIAMENT, 2 FEBRUARY, 1835
I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation.

Sunday, July 11, 2010

जज्बा आम आदमी kaa

आम आदमी कुछ भी कर सकता है सरकार कुछ नहीं .एक पेपर मैं एक न्यूज़ पढ़ी पढ़ कर दिल खुश कर दिया यह है आम आदमी का जज्बा सरकार का जज्बा हूँ सकता है अगर सरकार
अलीगढ़। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं हैं। भगवान का दिया सब कुछ हैं, फिर भी फिक्रमंद हैं अगली पीढ़ी के लिए, पानी के लिए। वे रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिये बारिश के साथ-साथ अपने बगीचे के पानी को भी बर्बाद होने से बचा रहे हैं।

बात कर रहे हैं अपने घर में सबसे पहले रेन वाटर हार्वेस्टिंग की शुरुआत करने वाले जिले के पहले दंपति की। ये हैं राज्य विद्युत परिषद के सदस्य पद से 15 साल पहले रिटायर हुए इंजीनियर एसपी सिंह और उनकी पत्नी शांति देवी की।

सारसौल इलाके में साईं मंदिर के पास दस साल पहले कम ही घर थे। तब एसपी सिंह ने शहर में घर बेचकर यहां मकान बनवाया था। यहां 60 हजार वर्ग फुट में उनका बगीचा भी है। इसके एक कोने पर मकान है। शांति देवी बताती हैं कि तब घर के आगे पीछे पानी भरता था। बगीचे का पानी भी सड़क पर भर जाता था। किसी ने उन्हें वाटर हार्वेस्टिंग के बारे में बताया। इंटरनेट से इस तकनीक के बारे में जानकारी जुटाई। पानी जमीन में डालने के लिए बोरिंग कराई और तीन टैंक बनाए। पानी को जमीन में डालने से पहले छाना जाता है। आखिरी टैंक में चूना, कोयला आदि डाला गया है ताकि जमीन में साफ पानी ही जाए।

शांति देवी बताती हैं कि शुरुआत में एक बोरिंग कराई थी, लेकिन बरसात ज्यादा होने पर परेशानी होती थी। बाद में दूसरी बोरिंग कराई। इस पर 20-22 हजार रुपये खर्च आया। वह कहती हैं कि लोगों को अपने घरों में भी ऐसे प्लांट लगाने चाहिए।

दंपति के घर 'फ्लोरा कॉटेज' में भूजल स्तर बढ़ गया है। बकौल शांति देवी, दस साल में पानी का स्तर तीन फुट बढ़ा है। पानी भी प्रदूषित नहीं हुआ है। वह समय-समय पर इसकी जांच कराती रहती हैं।

जिनके कंधों पर जल संरक्षण की जिम्मेदारी है, वे भले ही यह काम नहीं कर रहे हो। शहर में कई जागरूक नागरिक ऐसे हैैं, जो जल संरक्षण को लेकर सतर्क हैं और दूसरों के लिए नजीर बने हुए हैं।

सारसौल स्थित आरसीएस फ्लोर मिल के मालिक प्रदीप सिंगल चार साल पहले तमिलनाडु गए थे। वहां उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम देखा तो उनके मन में भी जल संरक्षण की ललक पैदा हुई। उन्होंने वहां से लौटकर दो रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाए। इनके जरिए दस हजार वर्ग मीटर एरिया का पानी जमीन में जाता है। इनके निर्माण पर लाखों रुपये खर्च किए। अब वे तीसरा सिस्टम भी लगा रहे हैं। यह सब उन्होंने गिरते भूजल स्तर को देखते हुए किया।

मैरिस रोड पर रहने वाले उद्यमी मोहित नंदन अग्रवाल का मकान करीब एक हजार वर्ग मीटर में बना हुआ है। ये भी घर और बरसात के पानी के संरक्षण के लिए आठ साल पहले वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था कर चुके हैं। मोहित बताते हैं कि जल संरक्षण करना हर किसी का उद्देश्य होना चाहिए। इससे गिरते भूजल स्तर को रोका जा सकता है। किया सरकार इस तरह ------------------------------------------

Friday, July 9, 2010

भारत बंद sei पेट्वा नहीं भरा तो बिहार बंद करवा diya

रोज रोज का बंद सी आखिर नेता लोग किया chattha है .बंद ,रैली, जम ,को इंडियन पेनल कोड मैं अमेन्द्मेंट कर की अपराध की कोटि मैं रखना चिह्या ,भरी जुरमाना पार्टी और पार्टी का वोर्केर पर लगाना jarauri है.

आम आदमी की बेबसी झलक

बंद में आम आदमी की बेबसी झलक

जोसफ बर्नाड
भारत बंद के अगले दिन मैं अपने एक पत्रकार मित्र के साथ प्रेस क्लब में चाय पी रहा थ
ा। मेरा वह मित्र एक अपोजीशन पार्टी को कवर करता है। चाय पीते हुए हम पुराने दिनों की यादें ताजा कर रहे थे, तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी। मित्र ने मुझे चुप रहने का इशारा किया। पार्टी के नेता का फोन था। मित्र बोला- सर कैसे हो? आवाज आई- अच्छा हूं, मगर बंद की कवरेज का मजा नहीं आया। इतना नेगेटिव करवेज मीडिया ने क्यों किया। घाटे के आंकड़े, क्या बकवास है। मित्र ने कोई जवाब नहीं दिया। नेता का बोलना जारी था- हमने प्रेस रिलीज जारी किया है। बंद सफल रहा, सब जगह लोगों ने भरपूर समर्थन दिया। मित्र अचानक बोला- लेकिन लोग बहुत परेशान हुए।

गाड़ियां चलने नहीं दी गईं। मेट्रो तक को नहीं छोड़ा गया। इस पर नेता का टोन बदल गया, आवाज कड़क हो गई- बंद में ऐसा होता है। एक ही दिन तो लोगों को परेशानी हुई। इसमें इतना हाय-तौबा... आखिर उनके लिए ही तो यह सब था। मित्र थोड़ा उत्तेजित होकर कहा- यह तो सरासर गुंडागर्दी है। बंद कीजिए, मगर लोगों को तंग मत करिए। इस बार नेता को हंसी आ गई। बोले- ज्यादा इमोशनल हो रहे हो। मित्र बोला- कार्यकर्ताओं को गुंडागर्दी करने से रोका जा सकता था। नेता का सब्र टूटा- भैया जोश में आगे-पीछे कुछ हो जाता है। हम तो कहते हैं, बंद के दिन लोगों को घर से निकलना ही नहीं चाहिए। .... अच्छा, रिलीज भेज दिया है, लगवा देना। मित्र ने बड़बड़ाते हुए फोन काटा। मैं उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगा। कुछ गड़बड़ तो नहीं हुआ, हल्के से पूछा।

पहले तो उसने मुझे घूरा, फिर बोला- क्या बताऊं, पत्नी स्कूल में टीचर है। बच्चा भी उसी स्कूल में पढ़ता है। बंद वाले दिन प्रिंसिपल को फोन लगाया तो उसने हड़का दिया- आज जरूर आना है। स्कूल बस में पत्नी और बच्चे को बिठाकर मैं घर आ गया। करीब आधे घंटे बाद पत्नी का फोन आया- बंद कराने वालों ने स्कूल बस की हवा निकाल दी है। बच्चे रो रहे हैं, जल्दी आओ। मैं गाड़ी लेकर पहुंचा। देखा, बीच सड़क पर बस खड़ी थी। दस-पंदह लोग बस को डंडे से मार रहे थे। बच्चे डर के मारे चिल्ला रहे थे। बस में छह लेडीज और एक पुरुष टीचर, सब डरे हुए थे। मैंने कुछ बच्चों के पैरेंट्स को बुलाया।

कई बार फोन करने के बाद पुलिस आई। स्कूल फोन करके गाड़ियां मंगवाई और बच्चों को स्कूल लेकर गए। यह सब बताकर मित्र गुस्से में बोला- यही है लोकतंत्र में बंद की हकीकत। एक बंद को सफल करने के लिए गुंडागदीर् कर रहा है। दूसरा, बंद को विफल करने के लिए लोगों को बिना सुरक्षा दिए स्कूल खोल रहा है, दफ्तर बुला रहा है। किसी को आम आदमी की परवाह नहीं है। अगर मेरी पत्नी और बच्चे को कुछ हो जाता तो...। मित्र ने सिर झुका लिया। मैंने उसे देखा। उसकी आंखों में आंसू की छोटी बूंद के रूप में आम आदमी की बेबसी झलक रही थी।

Saturday, July 3, 2010

बीजेपी का भारत बंद आखिर किया जतलाना चाहता hai

बीजेपी का भारत बंद आखिर किया जतलाना चाहता hai

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

Hamara ek mitra ki mail


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।



नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।



डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।



असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

Friday, July 2, 2010

कलियुगी उस्ताद

भारतीय परम्परा में उस्ताद या गुरु की महिमा का बहुत वर्णन है। गुरु को भगवान् से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है। प्राचीन समय में राजा के उपर हमेश धर्म दंड यानि की गुरु का दंड रहता था। वो राजा का मार्गदर्शक और विशेष उपाधि लिए राजसभा में उपस्थित रहता व् राजा को उसका हित अनहित समझा कर गलत मार्ग पर जाने से रोकता था।
और आज के उस्ताद, कोम्पुटर की एक कमांड पूछ लो तो पहेले २ समोसे का आर्डर कर देते हैं "जाओ भाई पाहिले पन्च्कुइन रोड से समोसे ले कर तो आओ फिर बताते है, हाँ, २ सिगरेट भी लेते आना" ये कलयुगी उस्ताद है। कमरा शिफ्ट करना है : "देखो भाई, हमारे पास टाइम नहीं है तुम कल छूती लेकर चले जाना और भाभी के साथ कमरा शिफ्ट करवा देना" यानि अपने वेतन में कटोती न हो तुम्हारी बेशक वात लग जाये।
प्राचीन काल में उस्ताद की चेलों से बहुत अपेक्षा रहेती थी... चेलों को कारीगरी हुनर के अलावा दीं दुनिया की भी पहेचान करवा कर भेजा जाता था "देख बबुआ उस्ताद का नाम मत डुबो देना"। और चेला भी वक्त - बे-वक्त छाती ठोक कर कहेता था "फलां उस्ताद के चेले हैं - इसे तो यूँ ही ठीक कर देंगे"
परन्तु आजकल के उस्ताद, चेलों को पहेले तो अपने चगुल से निकलने ही नहीं देते, अगर चेला थोडा होशियार निकला और उस्ताद के चंगुल से छूट गया तो फिर कहेना ही क्या? नालायाक है साला, गधा है साला, और अगर कहीं बाज़ार में एक ही जगह आमना सामना हो जाये तो छाती थोक कर कहेंगे, अरे चेला तो हमारा ही है" और चेले के जाने के बाद - उसी जगह चेले की बखिया उधेड़ते नज़र आएंगे।